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सुचिरचरितचारी मुण्डमौञ्जीप्रचारी । | |||
करकलितकपाली कुण्डली दण्डपाणिः | करकलितकपाली कुण्डली दण्डपाणिः | ||
स भवतु सुखकारी भैरवो भावहारी ॥ १॥ | |||
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अमलकमलनेत्रं चारुचन्द्रावतंसं | अमलकमलनेत्रं चारुचन्द्रावतंसं | ||
सकलगुणगरिष्ठं कामिनीकामरूपम् । | |||
परिहृतपरितापं डाकिनीनाशहेतुं | परिहृतपरितापं डाकिनीनाशहेतुं | ||
भज जन शिवरूपं भैरवं भूतनाथम् ॥ ३॥ | |||
सबलबलविघातं क्षेत्रपालैकपालं | सबलबलविघातं क्षेत्रपालैकपालं |
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॥ श्रीगणेशाय नमः ॥.[править | править код]
॥ श्रीउमामहेश्वराभ्यां नमः ॥
॥ श्रीगुरवे नमः ॥
॥ श्रीभैरवाय नमः ॥
सकलकलुषहारी धूर्तदुष्टान्तकारी
सुचिरचरितचारी मुण्डमौञ्जीप्रचारी ।
करकलितकपाली कुण्डली दण्डपाणिः स भवतु सुखकारी भैरवो भावहारी ॥ १॥
विविधरासविलासविलासितं नववधूरवधूतपराक्रमम् । मदविधूणितगोष्पदगोष्पदं भवपदं सततं सततं स्मरे ॥ २॥
अमलकमलनेत्रं चारुचन्द्रावतंसं सकलगुणगरिष्ठं कामिनीकामरूपम् । परिहृतपरितापं डाकिनीनाशहेतुं भज जन शिवरूपं भैरवं भूतनाथम् ॥ ३॥
सबलबलविघातं क्षेत्रपालैकपालं
विकटकटिकरालं ह्यट्टहासं विशालम् ।
करगतकरवालं नागयज्ञोपवीतं
भज जन शिवरूपं भैरवं भूतनाथम् ॥ ४॥
भवभयपरिहारं योगिनीत्रासकारं
सकलसुरगणेशं चारुचन्द्रार्कनेत्रम् ।
मुकुटरुचिरभालं मुक्तमालं विशालं
भज जन शिवरूपं भैरवं भूतनाथम् ॥ ५॥
चतुर्भुजं शङ्खगदाधरायुधं
पीताम्बरं सान्द्रपयोदसौभगम् ।
श्रीवत्सलक्ष्मीं गलशोभिकौस्तुभं
शीलप्रदं शङ्कररक्षणं भजे ॥ ६॥
लोकाभिरामं भुवनाभिरामं
प्रियाभिरामं यशसाभिरामम् ।
कीर्त्याभिरामं तपसाऽभिरामं
तं भूतनाथं शरणं प्रपद्ये ॥ ७॥
आद्यं ब्रह्मसनातनं शुचिपरं सिद्धिप्रदं कामदं
सेव्यं भक्तिसमन्वितं हरिहरैः सहं साधुभिः ।
योग्यं योगविचारितं युगधरं योग्याननं योगिनं
वन्देऽहं सकलं कलङ्करहितं सत्सेवितं भैरवम् ॥ ८॥
॥ फलश्रुतिः ॥
भैरवाष्टकमिदं पुण्यं प्रातःकाले पठेन्नरः । दुःस्वप्ननाशनं तस्य वाञ्छितर्थफलं भवेत् ॥ ९॥
राजद्वारे विवादे च सङ्ग्रामे सङ्कटेत्तथा । राज्ञाक्रुद्धेन चाऽऽज्ञप्ते शत्रुबन्धगतेतथा दारिद्रश्चदुःखनाशाय पठितव्यं समाहितैः । न तेषां जायते किञ्चिद दुर्लभं भुवि वाञ्छितम् ॥१०॥
॥ इति श्रीस्कान्दे महापुराणे पञ्चमेऽवन्तीखण्डे अवन्तीक्षेत्रमाहात्म्याऽऽन्तर्गते श्रीभैरवाष्टकं संपूर्णम् ॥